हर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा पल आता है कि जब वह उम्र में परिपक्व हो जाता है और विवाह के पश्चात संभोग लायक हो जाता है। कहने का अभिप्राय है कि सेक्स, संभोग और कामवासना इससे इंसान अछूता नहीं रह सकता। स्त्री हो या पुरूष उम्र के एक पड़ाव में आकर संभोग करते ही करते हैं। हमारे हिंदू समाज में विवाह के पश्चात ही संभोग को अहमियत दी गई है। कुल मिलाकर संभोग करना इंसान की अहम आवश्यकता भी है।
संभोग को यूं तो संतान उत्पत्ति का विकल्प माना गया है, जोकि सही भी है। बिना संभोग के संतान पैदा नहीं हो सकती। लेकिन यह भी सच है कि केवल संतान उत्पत्ति के उद्देश्य से किया गया संभोग वास्तविक आनंद नहीं दे पाता, यह केवल औपचारिकता रह जाती है। सही और उत्तम संभोेग तो वह होता है जिसमें स्त्री और पुरूष दोनों को असीम तृप्ति व आनंद की प्राप्ति हो। दोनों की संतुष्टी ही संभोग की सही परिभाषा है।
लेकिन शादी वे पूर्व बचपन में की गई गलतियों के कारण आई सेक्स कमजोरी या यौन विकार के कारण व्यक्ति सही से संभोग नहीं कर पाता, जिस कारण दूसरा पार्टनर अधूरा रह जाता है। उसकी काम-संतुष्टि पूरी नहीं हो पाती। इसलिए संभोग का पूरा आनंद पाने के लिए जरूरी है कि विवाह से पूर्व ही अपनी सेक्स कमजोरियों को दूर कर लिया जाये।
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